Tuesday, February 2, 2016

Social Media सोशल मीडिया व हमारा युवा : एक कटाक्ष

           
 समाज में जागरूकता व् अभिव्यक्ति की सवतंत्रता का श्रेय निःसंदेह ही सोशल मीडिया को जाता है। आज एक मध्यम वर्गीय युवा, जिसके पास दाल रोटी खाने को है, उस व्यक्ति का बैंक अकाउंट हो न हो, किसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर अकाउंट होना आम बात है। सोशल मीडिया की बादशाहत आज पुरे विश्व में है। हर वर्ग इससे जुड़ा हुआ है। विश्व में कुल 2.2 अरब इंटरनेट यूजर है। जिनमे से 100 करोड़ से भी अधिक फेसबुक यूजर हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सोशल मिडिया का प्रयोग लोगों की राय जानने में भी करने लगा है। सामाजिक पटल पर  अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने का भी एक माध्यम सोशल मीडिया है।  सोशल नेट्वर्किंग वर्तमान में एक स्टेटस सिम्बल भी बन गया है। जिसकी अच्छाइयाँ भी है।। व् बुराइयां भी। 
 ‌      सोशल मीडिया के द्वारा युवाओ को पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करना आधुनिकता का मापदंड बन गया है। इसका प्रभाव हमारे देश की युवा पीढ़ी पर देखा जा सकता है। जिनमे रहन सहन, खान पान व् वेशभुषा सभी शामिल है। धूम्रपम, मदिरापान आदि उन्हें फैशन का ढंग लगने लगा है। आपसी रिश्तों में दरारे आने लगी है। व् पारिवारिक प्रेम प्यार समाप्त होता जा रहा है। 


 ‌         आज का यक्ष प्रश्न यही है की युवा पीढ़ी का सदुपयोग कैसे करें। इसका जवाब भी सोशल मीडिया ही है। सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रयोग करके युवाओं को उचित मार्गदर्शन दिया जा सकता है।  अभिव्यक्ति के लिए सोशल नेटवर्किंग एक उचित माध्यम बन गया है। 

          सोशल मीडिया वह माध्यम  है, जहाँ व्यक्ति खुद को वैसा परिलक्षित करना चाहता है,  जैसा वह हो या न हो लेकिन होना जरूर चाहता है| युवा  तीन सौ प्रोफाइल पिक्चर में से  किसी एक बेहतरीन फ़ोटो को अपने व्यक्तित्व के असल आईने के तौर पर सोशल साईट पर  डालना चाहता है  और उस पर  आये  तरह तरह के कमेंट्स को अपनी मनोवैज्ञानिक इच्छाशक्ति  बढाने का स्त्रोत मात्र बना लेता है| लगातार दूसरों के  सामने अपनी झूठी छवि बनाते बनाते ज्यादातर युवा खुद भी इसकी गिरफ्त में आ जाता है| लड़के-लड़कियाँ  आजकल बॉय-फ्रेंड-गर्ल फ्रेंड का खेल यहीं खेलते हैं| अब तो ये साइट्स मैरिज काउंसलिंग  का काम भी कर रहे हैं| इसके बहुत उदाहरण आपको इंटरनेट पर मिल जायेगे।  फेक आई-डी के द्वारा लोगों के सामने व्यक्ति अपनी वह छवि प्रस्तुत करते हैं, जो वे होते ही नहीं हैं| जब सच का खुलासा होता है तो उसका परिणाम सिर्फ सम्बन्धों में खटास, अवसाद, दुःख ही नहीं होता, अपितु कई बार ऐसे परिणाम आते है जो असहनीय होते है। जो ताउम्र पीड़ा देते है। | विगत वर्षों में सोशल नेटवर्किंग  साइट्स पर बने रिश्तों के टूटने के परिणाम्सवरूप में की जाने वाली आत्महत्याओं की संख्या में हुई बढोत्तरी भी किसी से छुपी हुई नहीं है|युवाओं में पोर्न साइट्स की लोकप्रियता भी बढ़ती जा रही है और फैशन की अंधी दौड़ में उन पर भरोसा भी बढ़ा है।

                           यह चर्चा तो अभी समाप्त होने के बिंदु पर पहुँच ही नहीं सकती  इसलिये  सिर्फ इतना कहना ही उचित होगा कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स  एक ऐसा जिन्न है, जिस का  नियंत्रण यदि आपने अपने दिमाग से किया तो यह आपके व्यक्तित्व और सामाजिक रुतबे के साथ  साथ आर्थिक जमीन को भी नए आयाम दे सकता है लेकिन यदि यह जिन्न आपके दिमाग पर हावी हो जाता है, तो इसकी विनाशलीला व्यक्ति  विशेष से आरम्भ होकर समाज पर भी आकर  समाप्त ही हो, इसकी कोई गारंटी नहीं है|



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